एक गर्भवती महिला के लिए, अपने शरीर के अंदर विकसित होने वाले एक नए जीवन को महसूस करना बहुत ही अद्भुत अनुभव होता है। अधिकाशतः महिलाएं अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार मातृत्व का अनुभव एक बच्चे को जन्म देकर अवश्य करना चाहती है। हालाँकि इस अवस्था में महिलाओं को कई चरणों पर बहुत सी कठनाईयों का भी सामना करना पड़ता है।
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- गर्भावस्था के संकेत और लक्षण:
आप गर्भवती है यह अधिकाशतः गर्भावस्था के परीक्षण और अल्ट्रासाउंड द्वारा ही निर्धारित किया जाता है, लेकिन अनेकों गर्भावस्था के पहले के लक्षण द्वारा भी आप अनुमान लगा सकते हैं कि आप प्रेग्नेंट है।
गर्भावस्था के सबसे आम शुरुआती लक्षण में शामिल हैं:
- मासिक धर्म चक्र का मिस होना : यदि आपके मासिक धर्म की तारीख से एक सप्ताह या उससे अधिक समय ऊपर होने के बाद भी आपका मासिक धर्म नहीं हुआ है, तो आप गर्भवती हो सकती हैं। हालांकि, यह लक्षण भ्रम भी पैदा कर सकता है, यदि आप अनियमित मासिक धर्म चक्र से ग्रषित रहते है तो।
- स्तनों में दर्द और सूजन आना : गर्भावस्था के शुरुआती समय में हार्मोनल परिवर्तन आपके स्तनों को संवेदनशील बना सकते है जिससे आपके स्तन में दर्द और भारीपन रह सकता हैं।
- थकान और जी मिचलाना: गर्भावस्था के शुरुआती लक्षणों में थकान और बहुत अधिक नीद का आना बहुत ही समान्य लक्षण माना जाता है । प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान, हार्मोन प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता हैजिसकी वजह से बहुत अधिक नीद आती है। मॉर्निंग सिकनेस, जो दिन या रात किसी भी समय हो सकती है। हालांकि, कुछ महिलाओं में जी मिचलाना जैसी समय शुरुआत में दिखाई देती है वही कुछ महिलाओं को कभी इसका अनुभव नहीं होता है।
- पेशाब का अधिक आना : महिलाओं में सामान्य से अधिक बार पेशाब जाने की आवश्यकता हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे आपके गुर्दे अतिरिक्त तरल पदार्थ निकालने लगते हैं जो पेशाव के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है ।
- फूड क्रेविंग: कुछ महिलाओं के लिए, फूड क्रेविंग उनकी गर्भावस्था की पूरी अवधि तक रह सकता हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में, पहली तिमाही के अंत तक गायब हो जाता हैं। कई महिलांओं में फ़ूड क्रेविंग इतनी अधिक होती है कि वह खाने पर अंकुश नहीं लगा पाती, ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरुरी होता है कि वह जो भी खाएं वह हेल्दी हो क्योकि उनके शरीर द्वारा शिशु भी पोषक तत्व लेता है।

स्तनों के नीचे पड़ने वाले चकत्तों से छुटकारा पाने के लिए घरेलू उपचार
प्रेग्नेंसी टेस्ट करने का सही समय और तरीका:
सही समय पर पीरिएड्स के न आने पर हर महिला के मन में यह सवाल सबसे पहले आता है कि कई वह गर्भवती तो नहीं। ऐसे में महिला सबसे पहले जांच करके इस बात की पुस्टि करना चाहती है। प्रेग्नेंसी का पता लगाने के लिए देखा जाए तो बाजार में और घर में अनेकों उपाय मौजूद है, परन्तु उनके नतीजे कब बेहतर और सही रहेंगे इसके बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। इसलिए यह पता होना जरुरी है कि प्रेग्नेंसी टेस्ट आखिर कब और सेक्स के कितने दिन बाद किया जाना चाहिए। वैसे तो पीरियड का अपने निर्धारित समय पर नहीं आना प्रेग्नेंसी का पहला लक्ष्ण माना जाता है, परन्तु पिरिडियस मिस होने के और भी कई कारण हो सकते है। ऐसे में आपका कन्फर्म होना जरूरी होता है कि आप सच में प्रेग्नेंट है या नहीं।
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हालाँकि, गर्भावस्था की जाँच के बाद ही यह बात पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है कि आप गर्भवती है या नहीं। गर्भावस्था की जांच के दौरान महिला के यूरिन और हार्मोन में ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोफिन (एचसीजी/HCG) की मौजूदगी और उसके स्तर का पता लगाया जाता है। क्योकि इस हॉर्मोन की मौजूदगी में ही महिलाएं गर्भवती हो सकती है। अकसर महिलायें यह जानने की इक्छुक होती हैं कि पीरियड न आने के कितने दिन बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट करना चाहिए। सही रूप से प्रेग्नेंसी का पता तब ही लगाया जा सकता है जब महिला के रक्त में HCG हॉर्मोन उपस्थित हो। ज्यादातर महिलाओं में इस प्रोसेस को पूरा होने में कम से कम एक सप्ताह लग जाता हैं। लेकिन आपके पीरियड बिलकुल रेग्युलर रहते हैं, तो साइकल मिस होने के ठीक अगले दिन भी आप टेस्ट कर सकते हैं।

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कब करें प्रेगनेंसी टेस्ट?
गर्भावस्था की जाँच करने के लिए पीरियड्स का समय निकलने के 7 से 14 दिन के बीच में प्रेगनेंसी टेस्ट करना सबसे सही समय माना जाता है।
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प्रेगनेंसी टेस्ट किस प्रकार कर सकते हैं?
प्रेगनेंसी टेस्ट तीन प्रकार से किया जा सकता है:
- आप बाजार में मिलने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट किट को खरीद कर घर पर ही खुद से गर्भावस्था की जाँच कर सकते हैं।
- कुछ घरेलु उपायों को अपना कर आप घर पर ही प्रेगनेंसी टेस्ट कर सकते हैं।
- क्लिनिक जाकर मेडिकल प्रोफ़ेशनल से भी गर्भावस्था की जाँच करवा सकते हैं।
प्रेगनेंसी टेस्ट करने का सबसे सही समय:
सुबह का समय प्रेगनेंसी टेस्ट के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। क्योकि, सुबह के मूत्र में गर्भावस्था की सूचना देने वाले ‘एचसीजी हार्मोन का स्तर शरीर में बहुत अधिक होता है।
- गर्भावस्था के चरण:
गर्भावस्था का अनुभव हर महिला के लिए अलग अलग होता है। गर्भावस्था के कुछ लक्षण कई हफ्तों या महीनों तक चलते हैं। प्रेग्नेंसी हर महिला के लिए एक 9 से 10 महीने की यात्रा है। एक सामान्य गर्भावस्था आमतौर पर लगभग 40 सप्ताह तक चलती है, इसका प्रारम्भ महिला की आखिरी मासिक धर्म के पहले दिन से माना जाता है, जो वास्तव में गर्भाधान से लगभग दो सप्ताह पहले होती है। गर्भावस्था को तीन तिमाही में विभाजित किया जाता है। इनमें से प्रत्येक तिमाही की अवधि 12 से 13 सप्ताह के बीच होती है। प्रत्येक तिमाही के दौरान, एक गर्भवती महिला के शरीर में और उसके साथ-साथ उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण में परिवर्तन होते हुए दिखते हैं।
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गर्भावस्था के विभिन्न चरण :
- गर्भाधान और आरोपण : एक महिला के पीरियड होने के अनुमानतः दो सप्ताह के बाद, महिला ओवुलेट करती है जिस प्रकिर्या में उसके अंडाशय से एक परिपक्व अंडा निकलता हैं। यह अंडा निकलने के 12 से 24 घंटे तक निषेचित किया जा सकता है। पुरुष के शुक्राणु द्वारा निषेचित होने के बाद यह अंडा फैलोपियन ट्यूब द्वारा गर्भाशय में जाकर स्थित हो जाता है, जिसे निषेचन या गर्भाधान कहा जाता है। निषेचित अंडे के गर्भाशय में स्थानांतरित होने के बाद भ्रूण की कोशिकाएं विकसित होने लगती हैं, और भ्रूण मां के रक्त से ऑक्सीजन, पोषक तत्व और हार्मोन लेने लगता है। इस प्रकिर्या को आरोपण कहा जाता है ।
- पहली तिमाही (सप्ताह 1-12): पहेली तिमाही के दौरान गर्भावस्था में अनेकों हार्मोनल परिवर्तन होते है। शुरुआती गर्भावस्था के हफ्तों में शरीर के बाहर अधिक बदलाव नहीं दिखते है, लेकिन शरीर के अंदर कई बदलाव होते हैं। एक महिला अपनी पहली तिमाही के दौरान सामान्य से अधिक थका हुआ महसूस कर सकती है, अधिक बार पेशाब जा सकती है, महिला के स्तन आकर में बड़े हो सकते है, निप्पल के आसपास की त्वचा का रंग बदल सकता है, पाचन तंत्र बिगड़ सकता है। इसके साथ ही महिलाओं में भावनात्मक परिवर्तन भी देखने को मिल सकते हैं जैसे बात बात पर रोना, चिंता करना और अधिक उत्तेजित होना आदि।
- दूसरी तिमाही (सप्ताह 13-27 सप्ताह) : जब महिला अपनी दूसरी तिमाही में प्रवेश करती है तो उसको पहले तिमाही की तुलना में आसानी महसूस होती है, जैसे नींद आसान हो सकती है और ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है। परन्तु इस तिमाही में महिला के शरीर में अनेकों परिवर्तन देखने को मिलते है जैसे कि पेट बढ़ने लगता है, आप अपने शिशु को महसूस करने लगते हो, भ्रूण के बढ़ने के कारण फैलते पेट की त्वचा खुजली होना और अधिक पीठ दर्द का अनुभव होना आदि।
- तीसरी तिमाही (सप्ताह 28-40 सप्ताह) : तीसरी तिमाही के दौरान एक महिला के बढ़े हुए गर्भाशय के कारण उसको सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, एड़ियों, हाथ, पैर और चेहरे पर सूजन आ सकती है, बहुत अधिक बार पेशाब करने की आवश्यकता हो सकती है, कूल्हों और जोड़ों में अधिक दर्द हो सकता है। एक पूर्ण गर्भावस्था उसको कहा जाता है जब बच्चा 39 से 40 सप्ताह के बाद पैदा होता है।
- शिशु के गर्भ में विकास के चरण:
- पहला महीना: जैसे जैसे निषेचित अंडा बढ़ता है, एक पानी-तंग थैली इसके चारों ओर बन जाती है जिसे एमनियोटिक थैली कहा जाता है, साथ ही नाल भी विकसित हो जाती है। नाल द्वारा माँ से शिशु में पोषक तत्वों को भेजा जाता है। रक्त का परिसंचरण भी शुरू हो जाता है। पहले महीने के अंत तक शिशु लगभग 1/4 इंच लंबा हो जाता है (चावल के दाने से छोटा है)।
- दूसरा महीना: आपके बच्चे के मुँह, आँख, नाक, कान का विकास शुरू हो जाता है। हाथ और पैर की उंगलियां भी बनना शुरू हो जाती है।मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अन्य तंत्रिका ऊतक बनने लगते हैं। पाचन तंत्र और संवेदी अंगों का विकास शुरू हो जाता है। बच्चे के शरीर के बाकी हिस्सों के अनुपात में सिर थोड़ा बड़ा दिखता है।दूसरे महीने के अंत तक, आपका शिशु लगभग 1 इंच लंबा हो जाता है।
- तीसरा महीना: बच्चे की बाहें, हाथ, उंगलियाँ, हाथ और पैर की उंगलियाँ पूरी तरह से बन जाती हैं। बच्चा अपनी मुट्ठी और मुंह खोल और बंद कर सकता है। बच्चे के प्रजनन अंग भी विकसित होने भी शुरू हो जाते हैं, लेकिन अल्ट्रासाउंड पर बच्चे के लिंग को पहचनाना अभी मुश्किल होता है। तीसरे महीने के अंत तक, बच्चा पूरी तरह से बन जाता है। तीसरे महीने के अंत में, शिशु लगभग 4 इंच लंबा होता है। क्योकि बच्चे का लगभग पूरी तरह विकास हो चुका है, इसलिए गर्भपात की संभावना तीन महीने के बाद काफी कम हो जाती है।
- चौथा महीना : बच्चे के दिल की धड़कन सुनाई देने लगती है। पलकें, भौहें, नाखून और बाल बनना शुरू हो जाते हैं। दांत और हड्डियाँ ठोस होने लगती हैं। तंत्रिका तंत्र कार्य करना शुरू कर देता है। प्रजनन अंग और जननांग अब पूरी तरह से विकसित हो चुके होते हैं, और अल्ट्रासाउंड द्वारा देखा जा सकता है कि बच्चा लड़का है या लड़की। चौथे महीने के अंत तक, शिशु लगभग 6 इंच लंबा होता है।
- पांचवा महीना: अब तक बच्चे में मांसपेशियां विकसित हो चुकी होती हैं जिससे बच्चा मूवमेंट करने लगता है। बच्चे के सिर पर बाल उगने लगते हैं। बच्चे के कंधे और पीठ पर नरम महीन बाल उग जाते हैं। यह बाल बच्चे की रक्षा करते हैं ।पांचवें महीने के अंत तक, शिशु लगभग 10 इंच लंबा हो जाता है।
- छठा महीना : बच्चे की त्वचा का रंग लाल होने लगता है, झुर्रियाँ पड़ने लगती है और बच्चे की पारदर्शी त्वचा से नसें दिखाई देने लगती हैं और आँखें खुल जाती हैं। शिशु नाड़ी को हिला कर ध्वनियों का जवाब देने लगता है। छठे महीने के अंत तक, आपका शिशु लगभग 12 इंच लंबा हो जाता है।
- सातवां महीना: बच्चा पूरी तरह से सुनने और महसूस करने लगता है। वह उत्तेजनाओं का जवाब देने लगता है, जिसमें ध्वनि, दर्द और प्रकाश शामिल हैं। अब एमनियोटिक द्रव कम होने लगता है। सातवें महीने के अंत में, आपका बच्चा लगभग 14 इंच लंबा हो जाता है। ऐसी अवस्था में यदि बच्चा सातवे महीने में पैदा होता है तो उसके जीवित रहने की संभावना रहती है।
- आठवां महीना: बच्चा अधिक किक मरने लगता है। इस समय तक शिशु का मस्तिष्क तेजी से विकसित हो चुका होता है, और वह पूरी तरह देख और सुन सकता है। अधिकांश आंतरिक प्रणालियां अच्छी तरह से विकसित हो चुकी होती हैं, लेकिन फेफड़े अभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं।इस महीने तक शिशु लगभग 18 इंच लंबा हो चुका होता है।
- नवां महीना: शिशु पूरी तरह से परिपक्व हो चूका होता है और फेफड़े लगभग पूरी तरह विकसित हो चुके होते हैं। बच्चा पलक झपका सकता है, आँखें बंद कर सकता है, सिर को मोड़ सकता है, कस कर पकड़ सकता है और ध्वनियों, प्रकाश और स्पर्श का जवाब दे सकता है। शिशु नई दुनिया में प्रवेश करने के लिए तैयार हो चुका होता है। आमतौर पर, बच्चे का सिर बिरथ कैनाल की ओर होता है। अब तक आपका शिशु लगभग 18 से 20 इंच लंबा हो चुका होता है।

गर्भावस्था में आहार
एक स्वस्थ गर्भावस्था के लिए, माँ का आहार संतुलित और पौष्टिक होना बहुत जरुरी होता है – इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा का सही संतुलन शामिल होना आवशयक होता है। एक गर्भवती महिला को कैल्शियम, फोलिक एसिड, आयरन और प्रोटीन, इन चार पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है।संतुलित और पौष्टिक आहार खाने से यह सुनिश्चित होता है कि आपको और आपके बच्चे को सभी पोषक तत्व सही रूप से मिल रहे हैं या नहीं।
भारतीय महिलाओं में विटामिन-डी की कमी का कारण
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, माँ को एक विविध, संतुलित और पौष्टिक आहार का पालन करना चाहिए, अतः गर्भवती के आहार में शामिल होना चाहिए:
- फल और सब्जियाँ: प्रति दिन कम से कम पांच अलग अलग प्रकार की फल और सब्जियों के सेवन करने का प्रयास करें। आप इनका सेवन जूस या साबुत दोनों ही रूप में कर सकते हैं। ताजा फलों के सेवन पर ही जोर दें क्योकि इनका आमतौर पर इनमें विटामिन और अन्य पोषक तत्वों का उच्च स्तर होता है। विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि आमतौर पर जूस पीने की तुलना में फल खाना बेहतर होता है, क्योंकि जूस में प्राकृतिक शर्करा का स्तर बहुत अधिक होता है जो कि गर्भवती के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिक पोषण के लिए गाजर या व्हीटग्रास के जूस का सेवन बेहतर होता है।
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प्रोटीन, फोलिक एसिड, आयरन और कैल्शियम गर्भावस्था के दौरान क्यों जरूरी :
- प्रोटीन: प्रोटीन आपके और आपके शिशु के शरीर की कोशिकाओं के निर्माण के लिए बहुत जरुरी होता है, विशेष रूप से गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे तिमाही में। गर्भावस्था के दौरान, आपके द्वारा खाया जाने वाला प्रोटीन आपके शिशु के नए और क्षतिग्रस्त ऊतकों की वृद्धि और मरम्मत,मांसपेशियों को ठीक से काम करने में मदद और ऑक्सीजन का सही परिवहन करने में मदद प्रदान करता है।
- फोलिक एसिड: फोलिक एसिड एक प्रकार का विटामिन ‘बी है। यह ब्रेन,नर्वस सिस्टम और रीढ़ की हड्डीको मजबूती प्रदान करता है। गर्भावस्था में फोलिक एसिड के नियमित सेवन से शिशु में होने वाले जन्मजात विकार जैसे स्पिना बिफिडा की समस्या कम हो जाती है। यह एक प्रकार की बीमारी है जिससे बच्चे कि पीठ और जोड़ो का विकास सही से नहीं हो पाता है , जिसकी वजह से शिशु के विकलांग पैदा होने का खतरा हो सकता है।
- आयरन: आयरन एक जरुरी पोषक तत्व है, जो ऑक्सीजन को पूरे शरीर में पहुंचाने में रक्त कोशिकाओं को सहायता प्रदान करता है। आयरन आपके बढ़ते बच्चे को ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है, और थकान, कमजोरी, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन जैसे लक्षणों को कम करने में मदद करता है। यदि आपको पर्याप्त मात्रा में आयरन न मिले तो आपके शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर घटने से आपको एनीमिया हो सकता है।
- कैल्शियम: गर्भावस्था से लेकर स्तनपान कराने तक कैल्शियम बहुत ज़रूरी पोषक तत्व माना जाता है। महिला के साथ ही शिशु के विकास में भी कैल्शियम का बहुत अधिक रोल होता है। विकासशील शिशु को कैल्शियम की जरुरत मजबूत दांत और हड्डियों, सामान्य रक्त के थक्के, और मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों के निर्माण के लिए होती है। कैल्शियम के अच्छे स्रोतों में दूध, पनीर, दही, क्रीम सूप और पुडिंग शामिल हैं।

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गर्भावस्था के दौरान आपको कितना खाना चाहिए:
- गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान आपको रोज अतिरिक्त 300 कैलोरी और अतिरिक्त 15-20 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
- आपकी प्लेट में 50% फल और सब्जियां , 25% साबुत अनाज और 25% प्रोटीन होना चाहिए। बहुत कम मात्रा में तेल का प्रयोग करें । भोजन में डेयरी उत्पाद का उपयोग जरूर करें ।
- अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहें। प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी जरूर पियें।
- हर 3-4 घंटे में छोटा संतुलित भोजन करते रहे, अधिक समय तक भूखा न रहें। गर्भावस्था के दौरान भोजन छोड़ना या उपवास करना हानिकारक हो सकता है।
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गर्भवती होने पर व्यायाम:
गर्भावस्था के दौरान हल्की फुलकी एक्सरसाइज आपकी और आपके शिशु दोनों की सेहत के लिए बहुत लाभकारी होती है। अतः अपनी गर्भावस्था के दौरान नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या में अपनाने से यह आपको गर्भाअवस्था के समय होने वाली कुछ सामान्य असुविधाओं जैसे पीठदर्द, थकान, साँस लेने में मुश्किल और अधिक वजन बढ़ने आदि को कम कर सकता है।
गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करने के लाभ:
- हृदय गति में लगातार वृद्धि होती है
- रक्त परिसंचरण में सुधार होता है
- शरीर में लचीलापन आता है
- शरीर को मजबूती मिलती है
- अधिक वजन बढ़ने में नियंत्रण मिलता है
- शिशु को जन्म देने के लिए मांसपेशियों सही से तैयार होती है
- लेबर पैन कम होता है
- नार्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है
- दर्द से राहत मिलती है
- प्रसव के बाद तेजी से रिकवरी होती है
- पीठ दर्द, कब्ज और सूजन में कमी आती है
- गर्भवती के मूड को बेहतर बनाता है
- गर्भवती को अच्छी नींद प्रदान करता है
- शिशु के जन्म के बाद वापस सही आकार में लाने में मदद करता है
- गर्भावधि के मधुमेह और उच्च रक्तचाप के जोखिम में कमी आती है।
- गर्भावस्था में सोने की समस्या:
देखा जाता है कि जब आपको गर्भावस्था में अच्छी नीद की जरुरत होती है तब आप अपने पेट के आकर के बढ़ने के कारण अच्छी नीद नहीं ले पाते हैं। ऐसे में यह मालुम होना बहुत जरुरी है कि गर्भावस्था के समय सोने के लिए कौन सी पोजीशन अपनांनी चाहिए जो आपको अच्छी नीद लाने में मददगार हो सकती है,क्योंकि गर्भावस्था के दौरान पेट और पीठ के बल सोना सही विकल्प नहीं होते हैं।
अलग–अलग सोने की पोजीशन:
- पेट के बल सोना: यदि पेट के बल सोना आपकी सबसे पसंदीदा पोजीशन है तो ऐसे में यह पूरी तरह से तब तक ठीक है, जब तक कि आपका पेट का आकार बड़ा नहीं हो जाता है। पेट के आकर के बढ़ने के बाद आपको अपने सोने की पोजीशन बदलनी पड़ेगी।
- पीठ के बल सोना: विशेषज्ञ गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपनी पीठ के बल सोने से मना करते हैं, क्योकि ऐसी अवस्था में गर्भाशय और बच्चे का पूरा वजन गर्भवती महिला के पीठ पर टिका होता है। यह दबाव पीठ दर्द और बवासीर को बढ़ा सकता है और महिला के पाचन को बिगाड़ सकता है। यह अवस्था भ्रूण में भी रक्त के प्रवाह को कम कर सकती है, जिससे आपके बच्चे को कम ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलने का ख़तरा रहता है। यदि आप थोड़ी देर पीठ के बल लेटते हैं तो यह असुरक्षित है, लेकिन लंबे समय तक पीठ के बल सोना समस्याग्रस्त हो सकता है।
- बाईं ओर मुड़कर सोना: डॉक्टर विशेष रूप से सलाह देते हैं कि गर्भवती महिलाएं बाईं ओर मुड़कर सोएं। बाईं ओर मुँह करके सोने से प्लेसेंटा और आपके बच्चे तक पहुंचने वाले रक्त और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही बायीं ओर सोने से हृदय में रक्त का परिसंचरण अच्छा रहता है जो कि भ्रूण, गर्भाशय और किडनी तक अच्छा रक्त प्रवाह करता है।
- एसओएस (SOS) अवस्था: यदि आप फिर भी सोने में बहुत अधिक कठिनाई महसूस कर रहे हैं तो ऐसे में अधिकाशतः डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान सबसे अच्छी सोने की अवस्था “एसओएस” (SOS) को मानते हैं। इस अवस्था में अपने पैरों और घुटनों को मोड़कर रखें, और अपने पैरों के बीच एक तकिया रखें और साथ ही अपने पेट के नीचे भी एक तकिया रख सकते हैं।
नोट: ध्यान रखें कि गर्भावस्था में पूरी रात एक ही स्थिति में सोना आपकी सेहत के लिए सही नहीं होता हैं, अतः थोड़ी थोड़ी देर पर सोने की स्थिति बादतलते रहना चाहिए।