उम्र, हमारी ज़िंदगी के साथ जुड़ा वो सच है, जो वक़्त के साथ परिपक्व होता है और यह परिपक्वता, अनुभव में तब्दील हो जाती है, इसीलिए तो कहते हैं….”हमने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये हैं।” जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, ज़िंदगी “अनुभवों की पोटली” बनती जाती है। ये अनुभव, ये परिपक्वता हमारी ज़िंदगी की सरगम के सुर-ताल बन जाते हैं और हमारी खुशहाल ज़िंदगी के पोषक भी।यह तारतम्य हमारी शादीशुदा ज़िंदगी के लिए भी सार्थक है यानी आपकी वैवाहिक ज़िंदगी भी आपकी उम्र के साथ जवां, प्रौढ़ और बूढ़ी होती है । इसलिए हमारी खुशहाल ज़िंदगी के गुण हमारी उम्र और रिश्तों में छुपे हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए क्यों जरुरी है शारीरिक संबंध
रिश्तों में बुढ़ापा ना आए
बुढ़ापा, उम्र का वो दौर है जब हमारे अनुभव ज़िंदगी की एक पूरी किताब बन जाते हैं। इस किताब का हर पन्ना यादों का ख़ज़ाना होता है, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि ये यादें मधुर और मीठी ही हों। कभी-कभी उदासी और दुख-दर्द भी इन यादों का हिस्सा चाहे अनचाहे बन ही जाते हैं। लेकिन फिर भी हम चाहें तो उदासी के पलों की गिनती कुछ कम कर सकते हैं। रिश्ते चाहे वैवाहिक जीवन के हों या पारिवारिक, उन पर उम्र की परिपक्वता का असर तो पड़ना चाहिए, लेकिन इन रिश्तों को बुढ़ापा कभी नहीं आना चाहिए ।
पति-पत्नी का रिश्ता तो ताउम्र जवां ही रहना चाहिए। इस रिश्ते की मधुरता इसके जवां रहने पर ही रहेगी और इसके लिए सबसे ज़रूरी है एक दूसरे को समर्पित होकर, एक-दूसरे के विचारों, भावनाओं को सदा महत्व देना। वैवाहिक रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से होती है और दोस्ती कभी बूढ़ी नहीं होती।अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों को एक-दूसरे के सामने ज़ाहिर करने में जरा भी संकोच न करें।ऐसा नहीं है कि उम्र बढ़ने के साथ इच्छा नहीं बढ़ सकती और प्यार तो उम्र नहीं देखता है।
उम्र की सीमा से नहीं बंधे हैं शारीरिक संबंध
यह माना जाता है, बढ़ती उम्र के साथ “सेक्स लाइफ़” छोटी हो जाती है।लेकिन यह भ्रांति मात्र है।अक्सर लोग 40 या 50 की उम्र पार करते ही अपने आपको बूढ़ा समझने लगते हैं।यह सोच बना लेते हैं कि अब इस उम्र में शारीरिक संबंधों की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन तथ्य इस सोच को नकारते हैं । कई बार उम्रदराज़ लोग अपने साथी से खुल कर बात करने पर संकोच करते हैं।
लेकिन इस बारे में तथ्य कहते हैं कि इन संबंधों का उम्र से कोई मतलब नहीं है। आपका स्वस्थ रहना ज़रूरी है और शारीरिक संबंध तो आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक भी होते हैं। तो क्यों आप उम्र की फ़िक्र करें। बढ़ती उम्र के साथ संबंधों की मधुरता या शारीरिक संबंध, आपकी ज़िंदगी को खुशहाल बनाते हैं। इस उम्र में आप एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह से जान चुके होते हैं कि इन संबंधों का मज़ा ज़्यादा ले सकते हैं। बस, खुल कर बात करें। उम्रदराज़ लोगों में आत्मविश्वास और स्व-जागरूकता ज़्यादा होती है, जो सुखद और सुरक्षित “सेक्स लाइफ़” के लिए सहायक है।
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भावनात्मक संबंधों की गहराई
हमारी ज़िंदगी में रिश्तों की जितनी अहमता है, उतना ही अहम् है इन रिश्तों की भावनात्मक मज़बूती। हमें स्वयँ भी भावनात्मक रूप से मज़बूत रहना ज़रूरी है। ज़िंदगी में परिस्थितियाँ विषम होना सहज है, लेकिन इनका असर हम पर व्यक्तिगत रूप से या हमारे रिश्तों पर नहीं पड़ना चाहिए। अगर ज़रूरत पड़े तो तुम हो, यह विश्वास आपसी संबंधों में ज़रूरी है। जीवनसाथी के साथ हम भावनात्मक रूप से जितनी गहराई से जुड़ेंगे, उतना ही ज़्यादा ज़िंदगी की समस्याओं को दरकिनार कर अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के मज़े लेंगे।
कहते हैं, महिलाएं पुरूषों की तुलना में ज़्यादा भावुक होती हैं, पर ऐसा नहीं है कई बार पुरूष भी इस हद तक भावुक होते हैं कि “इमोशनल फूल” की पदवी हासिल कर लेते हैं। लेकिन हाँ, ज़रूरत से ज़्यादा भावुकता आपको कमजोर भी बना सकती है। तो भावुकता रिश्तों के लिए ज़रूरी है, पर कुछ सीमा तक।
ख़ुश रहना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है, लेकिन यह किसी दवा से नहीं मिलता। खुशहाल ज़िंदगी आपसी समझ, सहयोग, परिपक्वता, भावनाओं की सहजता से बहुत आसान है।
एक पूरी ज़िंदगी के हर रंग, हर रूप को सहज स्वीकार कर ज़िंदगी को खुशहाल बनाएं। यक़ीन मानिए, ज़िंदगी खुशहाल है तो रिश्ते और मज़बूत ही होंगे। वैवाहिक और पारिवारिक जीवन में ख़ुशी के पलों का आगमन हमेशा होना चाहिए ।