चेहरे को उतार लेना
जब मन दुखी सा लगे
या खिलखिला जाना
जब सब सुखी सा लगे
ये तो सब ही किया करते हैं
इसमे अनोखा या नया क्या है
चेहरे पे दिख जाता है सब हाल
कहने की फिर भी ये प्रथा क्या है
पर एक बात कुछ अखरती है
कि अजीब सी ये प्रक्रति है
दूसरे की ख़ुशी से लोग दुखी हैं
और आँसू पे मुस्कान बिखरती है
इस सब से मैंने तो ये सबक ले लिया
अपना दुःख न दिखलाऊंगा
जितना ज्यादा दर्द मिलेगा
उतना ज़्यादा मुस्कुराउंगा
तो अब जब भी कोई ताना देता है
चाहे जाना या अनजाना देता है
मैं बस इतना कर लेता हूँ
कि थोड़ा सा हँस देता हूँ
अब कोई बुरा भला कुछ भी कहता है
मेरा संतुलन बना रहता है
मैं उसकी लाज रख लेता हूँ
और थोड़ा सा हँस देता हूँ
कोई लाँछन भी जो लगाता है
और एक की सौ सिखाता है
मैं उसकी कमी ढक लेता हूँ
और थोड़ा सा हँस देता हूँ
कोई दुःख जो याद दिलाता है
या मन आहत कर जाता है
मैं उसको क्षमा कर लेता हूँ
और थोड़ा सा हँस देेता हूँ
न रोने से दुःख ही घटता है
न हँसी ख़ुशी को बढाती है
कभी ख़ुशी में रोना आता है
कभी दर्द में हँसी भी आती है
जब अंतर नहीं पड़ता दोनों में
चेहरे के ऊपरी भावों से
तो मैं आंसू को कैद कर लेता हूँ
और थोड़ा सा हँस देता हूँ